Tuesday, November 17, 2009

आओ जानें बंकिमचन्द्र चटर्जी कौन है? vande-matram-haqeeqat-islam

वह एक ऐसा उपन्यासकार है जो क्रान्तिकारियों को फांसी देने वाले अंग्रेजों का वेतनभोगी सेवक था। उसका रचा हुआ कोई भी गीत देशप्रेम का पैमाना कैसे बन सकता है?-- (संपादकीय मासिक पत्रिका 'वन्‍दे ईश्‍वरम')
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दारूल उलूम के आलिमों ने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी है और अपनी जानें कुर्बान की हैं। उनके देशप्रेम पर वे लोग उंगली उठा रहे हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में न कभी भाग लिया और न ही कोई क़ुर्बानी दी, बड़ी हास्यास्प्द सी बात है।

बंकिमचन्द्र चटर्जी कौन है?
वह एक ऐसा उपन्यासकार है जो क्रान्तिकारियों को फांसी देने वाले अंग्रेजों का वेतनभोगी सेवक था। उसका रचा हुआ कोई भी गीत देशप्रेम का पैमाना कैसे बन सकता है?
और वह गीत भी ऐसा हो जो ‘ज्ञान’ के विपरीत हो और वह गीत एक ऐसे उपन्यास का हिस्सा हो जिसमें ‘वन्दे मातरम् गाने वाले सन्यासी बेक़सूर मुसलमानों के घर जला रहे हों, उन्हें लूट रहे हों, उन्हें क़त्ल कर रहे हों।

इसलाम सलामती का दीन है। वह मिथ्या कल्पनाओं और समाज में नफ़रत फैलाने वाली बातों को कहने-गाने की इज़ाज़त नहीं देता। वेदमत भी यही है- मा चिदन्यद्विशंसत (ऋग्वेद 8:1ः1)
उसके अतिरिक्त किसी अन्य की उपसना न करो।

य एक इत्तमुष्टुहि (ऋग्वेद 6ः45ःः16)
वह एक ही है उस ही की स्तुति करो।

क्या इस प्रमाण के बाद भी मुसलमानों से ‘वन्दे मातरम्’ गाने का आग्रह किया जाएगा?

जबकि इसे गाने के लिए खुद के पास ही ज्ञान का कोई आधार न हो।
मुसलमानों के मुँह से एक पालनहार की महानता की बात सुनकर तो उन्हें भी अपना भूला हुआ ज्ञान याद आ जाना चाहिए था और इनसानियत को बांटने वाली हरेक मिथ्या परम्परा और अज्ञान को छोड़ देना चाहिए था। सत्य का इनकार करना भारत की ज्ञान परम्परा से द्रोह करना है, मानवता को अज्ञान के अंधेरों में भटकाना है और खुद अपनी आत्मा का भी हनन करना है।

‘जो मनुष्य जीते हुए अपनी आत्मा का हनन करते हैं वे मरने के बाद अंधकारमय असुरों के लोक को जाते हैं।’ (यजुर्वेद 40ः3)

‘और जिस किसी ने मेरी स्मृति से मुँह मोड़ा तो उसका जीवन संकीर्ण होगा और क़ियामत के दिन हम उसे अंधा उठाएंगे। वह कहेगा:’’ ऐ मेरे पालनहार! तूने मुझे अंधा क्यों उठाया, जबकि मैं आँखों वाला था?’’

वह बताएगाः ‘‘इसी तरह (तू संसार में अंधा रहा था) तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तो तूने उनहें भुला दिया था। उसी तरह आज तुझे भुलाया जा रहा है।’’ इसी प्रकार हम उसे बदला देते हैं जो मर्यादा का उल्लंघन करें और अपने पालनहार के आदेशों पर विश्वास न करे। और परलोक की यातना तो अत्यन्त कठोर और अधिक स्थायी है। (पवित्र कुरआन, ता॰हा॰ः124-127)

ईश्वर के आदेशों को भुलाने का नतीजा लोक परलोक में संकीर्ण जीवन, अंधकार और कठोर यातना के रूप में निकलता है। आज लड़कियों को योग्यवर नहीं मिलते, विवाहिताएं दहेज के लिये जला दी जाती हैं, कन्या भ्रूण गर्भ मे ही मार डाला जाता है, विधवाएं बेसहारा भटकती हैं, बुढ़ापे में माँ-बाप धुत्कार दिए जाते हैं बच्चों के अपहरण हो रहे हैं, मिलावट और बेईमानी आम है, चोरी डाके हत्या बलात्कार की ख़बरों ने चैंकाना भी छोड़ दिया है, दंगे-फसाद मानो हरदम तैयार खड़े हैं। जातिवाद के अपमान का बोझ पहले से ही है।
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'वन्‍दे ईश्‍वरम'
अर्थात वन्‍दना करो उसकी जिसने सारी सृष्टि बनाई

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